उसका मुरीद बनके रहा, उसका फरीद बनके रहा ,
उसकी फज़ल में खुश था मैं , के उसका नदीम बनके में रहा... इक बार सेहरा से गुज़रा और इक बार चमन से, उसको पाने की चाहत में मैं इक उम्र से गुज़रा.... उसकी जिंदगी का पलाश, उसका एहसास बन के जीता हुआ मैं, रात भर खुद को उसके अक्स से सीता हु मैं.... उसका मिलना इक इतेह्फाक है या फिर रहम बिस्मिल का , के वोह जीते है आराम से और उन्हें होश नहीं मेरे मिलने का.... ~ रजत |
Thursday, September 29, 2011
उसका मुरीद बनके रहा, उसका फरीद बनके रहा
Sunday, September 4, 2011
Friday, September 2, 2011
Subscribe to:
Posts (Atom)