Thursday, June 30, 2011

This Poem 'Chaand Aur Kavi' (The Moon and the Poet) written by Ramdhari Singh 'Dinkar'

आदमी का स्वप्न ? है वह बुलबुला जल का,

आज उठता और फिर कल फूट जाता है,

किन्तु फिर भी धन्य ठहरा आदमी ही तो,

बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है|

Amazing Hindi Poetry

बचपन का वो आश्वासन
शायद था अंधविश्वास
दोषी भी तो शायद
है अपनी ही आस

स्वार्थ लिप्त इस दुनिया मे
भावनाओं का मोल नही
गूंगापन मंज़ूर यहाँ है
पर मन के सच्चे बोल नही
रह जाता है पंछी फड़फ़डा कर अपने परों को
तोड़ने को आतुर वो लोहे कि उन छड़ों को
एक एक कर ढहता है धीरज का हर स्तम्भ
आहत मन का दंभ है
या है साँसों का हड़कंप
आंखें जैसे खोयी हों
टूटे सपनों की समीक्षा मे
निगल ना जाये रात इन्हें
भोर कि प्रतीक्षा मे


फूँक कर रखने हैं कदम
कहीं छूट ना जाये संयम
और टूट ना जाएँ कहीँ
"सुसंस्कृत" समाज के
ये दृढतम नियम ....

Lines by Mir

हस्ती अपनी हुबाब की सी है
यह नुमाईश सराब की सी है

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है

बार बार उसके दर पे जाता हूं
हालत अब इज़्तिराब की सी है

मैं जो बोला कहा कि यह आवाज़!
उसी ख़ाना-ख़राब की सी है

मीर उन नीम-बाज़ आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

(saraab=mirage)
(hubab=bubble)

Beautiful Gazal By Mir

देख तो दिल कि जाँ से उठता है
यह धुवाँ सा कहाँ से उठता है

गोर किस दिलजले की है यह फलक
शोला एक सुबह याँ से उठता है
[gor=grave]

नाला सर खींचता है जब मेरा
शोर एक आसमान से उठता है

लड़ती ही उसकी चश्म-ए-शोख जहाँ
एक आशोब वां से उठता है

बैठने कौन दे है फिर उसको
जो तेरे आस्तां से उठता है

इश्क़ एक मीर भारी पत्थर है
कब यह तुझ नातवां से उठता है

Tuesday, June 21, 2011

Fabulous Song by Akcent-That's My Name

Akcent :- That's My Name and Lets Talk about it


 

Thought Of The Day

A conclusion is the place where you got tired of thinking.
                             

Tuesday, June 7, 2011

Thought Of The Day

I love my past. I love my present. I’m not ashamed of what I’ve had, and I’m not sad because I have it no longer....

Monday, June 6, 2011

Beautiful Lines by Sahir Ludhianvi

Poetry

"ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के,
ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के,
कहाँ है कहाँ है मुहाफ़िज़ खुदी के?
जिन्हें नाज़ है हिंद पर,वो कहाँ हैं?" ............................................................................................................................................................
"मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे, बज़्म- ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या माने. सबत जिन राहों पर है सतबते शाही के निशां उसपे उल्फत भरी रूहों का गुज़र क्या माने?"-
 

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 जश्ने ग़ालिब / साहिर लुधियानवी

(यह नज़्म 1968 में लिखी गई)


इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी-ए-कामिल को,
तब जाके कहीं हम को ग़ालिब का ख़्याल आया ।
तुर्बत है कहाँ उसकी, मसकन था कहाँ उसका,
अब अपने सुख़न परवर ज़हनों में सवाल आया ।


सौ साल से जो तुर्बत चादर को तरसती थी,
अब उस पे अक़ीदत के फूलों की नुमाइश है ।
उर्दू के ताल्लुक से कुछ भेद नहीं खुलता,
यह जश्न, यह हंगामा, ख़िदमत है कि साज़िश है ।

जिन शहरों में गुज़री थी, ग़ालिब की नवा बरसों,
उन शहरों में अब उर्दू बे नाम-ओ-निशां ठहरी ।
आज़ादी-ए-कामिल का ऎलान हुआ जिस दिन,
मातूब जुबां ठहरी, गद्दार जुबां ठहरी ।


जिस अहद-ए-सियासत ने यह ज़िन्दा जुबां कुचली,
उस अहद-ए-सियासत को मरहूमों का ग़म क्यों है ।
ग़ालिब जिसे कहते हैं उर्दू ही का शायर था,
उर्दू पे सितम ढा कर ग़ालिब पे करम क्यों है ।

ये जश्न ये हंगामे, दिलचस्प खिलौने हैं,
कुछ लोगों की कोशिश है, कुछ लोग बहल जाएँ ।
जो वादा-ए-फ़रदा, पर अब टल नहीं सकते हैं,
मुमकिन है कि कुछ अर्सा, इस जश्न पर टल जाएँ ।


यह जश्न मुबारक हो, पर यह भी सदाकत है,
हम लोग हक़ीकत के अहसास से आरी हैं ।
गांधी हो कि ग़ालिब हो, इन्साफ़ की नज़रों में,
हम दोनों के क़ातिल हैं, दोनों के पुजारी हैं ।


तुर्बत= क़ब्र; मसकन= निवासस्थान; अक़ीदत - श्रद्धा, वादा-ए-फ़रदा= कल के लिए किया गया वायदा



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हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं / साहिर लुधियानवी 

हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं
मैं मुन्तिज़र हूं मगर तेरा इन्तज़ार नहीं

हमीं से रंग-ए-गुलिस्तां हमीं से रंग-ए-बहार
हमीं को नज्म्-ए-गुलिस्तां पे इख्तयार नहीं


अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत अए मुतिरब
अभी हयात का माहौल ख़ुशगवार नहीं


तुम्हारे अह्द-ए-वफ़ा को अहद मैं क्या समझूं
मुझे ख़ुद अपनी मोहब्बत का ऐतबार नहीं


न जाने कितने गिले इस में मुज्तिरब हैं नदीम
वो एक दिल जो किसी का गिलागुसार नहीं


गुरेज़ का नहीं क़ायल हयात से लेकिन
जो सोज़ कहूं तो मुझे मौत नागवार नहीं


ये किस मक़ाम पे पहुंचा दिया ज़माने ने
कि अब हयात पे तेरा भी इख्तयार नहीं

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मेरे ख्वाबों के झरोकों को सजाने वाली / साहिर लुधियानवी 

मेरे ख्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं
पूछकर अपनी निगाहों से बतादे मुझको
मेरी रातों की मुक़द्दर में सहर है कि नहीं


चार दिन की ये रफ़ाक़त जो रफ़ाक़त भी नहीं
उमर् भर के लिए आज़ार हुई जाती है
जिन्दगी यूं तो हमेशा से परेशान सी थी
अब तो हर सांस गिरांबार हुई जाती है


मेरी उजड़ी हुई नींदों के शबिस्तानों में
तू किसी ख्वाब के पैकर की तरह आई है
कभी अपनी सी कभी ग़ैर नज़र आती है
कभी इख़लास की मूरत कभी हरजाई है


प्यार पर बस तो नहीं है मेरा लेकिन फिर भी
तू बता दे कि तुझे प्यार करूं या न करूं
तूने ख़ुद अपने तबस्सुम से जगाया है जिन्हें
उन तमन्नाओ का इज़हार करूं या न करूं


तू किसी और के दामन की कली है लेकिन
मेरी रातें तेरी ख़ुश्बू से बसी रहती हैं
तू कहीं भी हो तेरे फूल से आरिज़ की क़सम
तेरी पलकें मेरी आंखों पे झुकी रहती हैं


तेरे हाथों की हरारत तेरे सांसों की महक
तैरती रहती है एहसास की पहनाई में
ढूंढती रहती हैं तख़ईल की बाहें तुझको
सर्द रातों की सुलगती हुई तनहाई में


तेरा अल्ताफ़-ओ-करम एक हक़ीक़त है मगर
ये हक़ीक़त भी हक़ीक़त में फ़साना ही न हो
तेरी मानूस निगाहों का ये मोहतात पयाम
दिल के ख़ूं का एक और बहाना ही न हो


कौन जाने मेरी इम्रोज़ का फ़र्दा क्या है
क़ुबर्तें बढ़ के पशेमान भी हो जाती है
दिल के दामन से लिपटती हुई रंगीं नज़रें
देखते देखते अंजान भी हो जाती है


मेरी दरमांदा जवानी की तमाओं के
मुज्महिल ख्वाब की ताबीर बता दे मुझको
तेरे दामन में गुलिस्ता भी है, वीराने भी
मेरा हासिल मेरी तक़दीर बता दे मुझको

Thought Of The Day

             
                    Love is not singular except in Syllable.

Friday, June 3, 2011

Uth meri jaan mere saath hi chalna hai tujhey...


Jo bejaan khilonon se bahel jaati hai
Tapti saanson ki haraarat se pighal jaati hai
Paaon jis raah mein rakhti hai phisul jaati hai
Bankey seemaab har ek zurf mein dhal jaati hai
Zindagi jihad main hai sabar kay qabu mein nahin.
Jannat ek aur hai jo mard kay pehloo mein naheen.
Uski azaad ravish par bhi machalna hai tujhe
Zeest ki aahni saanchey mein dhalna hai tujhey
Uth meri jaan mere saath hi chalna hai tujhey...

Thursday, June 2, 2011

Kavita : हो गई है पीर पर्वत / दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

Yaaro yehi dosti hai....

Yaaron Yeh Hi Dosti Hai
Oh Kismat Se Jo Mili Hai
Sab Sang Chalen
Sab Rang Chalen
Chaltey Rahen Hum Sada 

Thought Of The Day

Throw a lucky man into the sea, and he will come up with a fish in his mouth.


Nobody Knows its empty...

  Nobody Knows its empty
This smile that I wear,
The real I is left in the past
Bcoz U have left me there...

Nobody Knows I am crying
They wont even see my tears,
When they think that I m laughing
I still wish U were here...

Nobody Knows its painful
They think that I m strong,
They say that this wont kill me
But I wonder if they were wrong...

Nobody knows I m praying
that you will change my mind,
they think that I had let you go
When U left me behind...

Nobody knows I miss U
They think I feel set free,
But I feel like I m bound with chains
Trapped In the mystery...

Nobody Knows I need U
They say I can do it on my own,
But they dont know I m crying
When I m all alone...

Nobody knows I want U back
They think I have moved on,
But they dont know I m still inside
when I always open the door...

Nobody knows how much I love you
They say it was not worth,
But they dont know love cant b valued
when valued it cant b love...
 
 

Wednesday, June 1, 2011

Thought Of The Day

Everything is perfect in the universe –even your desire to improve it.