Thursday, June 30, 2011

Lines by Mir

हस्ती अपनी हुबाब की सी है
यह नुमाईश सराब की सी है

नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है

बार बार उसके दर पे जाता हूं
हालत अब इज़्तिराब की सी है

मैं जो बोला कहा कि यह आवाज़!
उसी ख़ाना-ख़राब की सी है

मीर उन नीम-बाज़ आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

(saraab=mirage)
(hubab=bubble)

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