Sunday, October 12, 2014

Diwali

तुम्हारी आँखों में पिछली दिवाली की चमक अभी बाकी है...

अमावस के दिनों में ये रोशनी की लहर और ज़ुबाँ पे मिठास ,
             लेकिन मुझे आज भी अपने चाँद को देखने की कसक अभी बाकी है...
बहुत वादे थे ज़िन्दगी के मुझ से आज के कल के ,
             लेकिन आज की रात ज़िन्दगी की चौसर अभी बाकी है...
गर्दिश में आज तारे ही लिखे होंगे मेरी जीस्त में ,
              क्यूंकि मेरे माजी से सुलह होनी अभी बाकी है...
आज नूर बरस रहा है बग़ैर चांदनी के बे-सबब ,
              के वोह इक शम्मा -ए -रौशनी  बन के मुझ से मिलने वाली है...


~ रजत 

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