Friday, September 7, 2012

Its all about Rajat 'n' Bimpal

तरकीब निकाली थी उसने ,
                     जीवन सुगम बनाने की!

परिणय-सूत्र में बंधे है लेकिन,
                    ज़िद है सन्यासी बन जाने की!

ग्रहस्त-जीवन छोड़ सन्यासी कैसे बन पाओगे....

ज़िम्मेदारी उठाओ और साथ चलो,
                तभी 'बिम्पल' से 'रजत' और 'रजत' से 'बिम्पल' कहलाओगे ...

~  रजत 

Wednesday, September 5, 2012

Tuesday, September 4, 2012

आदत

फितरत नहीं मज़ा बन गयी है,
              आदत नहीं नशा बन गयी है....
~ रजत

ग़ुरबत

पीता हु उसकी ग़ुरबत की शराब,
               के साकी की दवा में वो बात कहाँ....
~ रजत

अपने भी किस्से बहुत सारे है

किस्मत के मारे है,
                     वर्ना अपने भी किस्से बहुत सारे है...
नभ तक को छु लिया था हम ने ,
                     के आज कंकर ही अपने सहारे है...
मृघ त्रिशना की बात ही न करो तुम...
मृघ त्रिशना की बात ही न करो तुम,
                   हम ने तो सिंह को भी ललकारा है...
सोने जैसी चमक होती थी अपनी,
                 के आज खुद 'रजत' से हारा है....

~ रजत

Its all about divine power...

सम दृष्टि , समकोण एक नजरिया है,
                              दुर्जन दानव की इक गठरिया है....
तरकीब, तालाश एक आवशकता है,
                             काबा, कैलासा एक वक्ता है....
वयाक्यंश, व्यंग एक आलाप है,
                           क्रिया, कर्ता एक जीवन का सार है...
तथ्य, तृप्त एक परिणाम है,
                          हम में ही मौला, महावीर एक विराजमान है...
~ रजत

झलक भर ले के रख लूँगा उसकी

झलक भर ले के रख लूँगा उसकी ,
                             के वोह शक्स कुछ परेशान सा करता है ...
उसके आइने में देखा जब अपना साया,
                            के वोह शक्स कुछ परेशान सा करता है ...
उसकी कशिश में जब फूलो को बिखरते देखा,
                             के वोह शक्स कुछ परेशान सा करता है ...
ये मीनार, ये दरख़्त , इसी आबो-हवा में देखा था उससे,
                             के वो खुदा का अक्स कुछ परेशान सा करता है...
अब भी उस से मिलने की चाहत में जला राखी है शमा,
                             के वोह परवाना कुछ परेशान सा करता है.....

~ रजत

ये रंग, ये पलाश के फूल, ये काजल उसका...

ये रंग, ये पलाश के फूल, ये काजल उसका,
             कल रात स्वर्णिम आभा में भीगा था आँचल जिसका...
ये शोखी, ये पतंग , ये हवा सा मटकना उसका,
             कल रात मांझे में उलझा था ईमान जिसका....
~ रजत

खिली धुप में बारिश

खिली धुप में बारिश के तस्सवुर से इन्द्रधनुष होता है,
              खाली बारिश में तो सिर्फ गुब्बार ही ज़मीन पे गिरा होता है...
~ रजत

खवाहिश

खवाहिश, तुझ से मिलने के बाद ज़िन्दगी की तासीर बदलने लगी...
               तम्मना की चाशनी , जुस्तजू के सांचे में ढलने लगी....

~ रजत

धरती क्या, हमने सूरज के चक्कर काट लिये

धरती क्या, हमने सूरज के चक्कर काट लिये,
                           धुरी पे रह कर हाय, बरसो मॉस झाँक लिये ...

      आसमान को छुने की तलब अभी जारी  है,
                          वही सोच आज मैंने सागर में कूद दे मारी हैं ....

     आज तारों  के बीच से निकल जाऊँगा मैं ,
                           चाँद
को छुने की चाहत में टूटा हुआ तारा कहलाऊंगा मैं ....

~ रजत

के वोह शक्स कुछ परेशान सा करता है

झलक भर ले के रख लूँगा उसकी ,
    के वोह शक्स कुछ परेशान सा करता है ...

उसके आइने में देखा जब अपना साया,
   के वोह शक्स कुछ परेशान सा करता है ...

उसकी कशिश में जब फूलो को बिखरते देखा,
    के वोह शक्स कुछ परेशान सा करता है ...

ये मीनार, ये दरख़्त , इसी आबो-हवा में देखा था उससे,
    के वो खुदा का अक्स कुछ परेशान सा करता है...

अब भी उस से मिलने की चाहत में जला राखी है शमा,
     के वोह परवाना कुछ परेशान सा करता है...

~ रजत

तेरी सादगी पे मरते थे कभी

तेरी सादगी पे मरते थे कभी,
             के आज डर लगता है तेरी सफाई से!
~ रजत

इंतज़ार में उसने किताबो के पन्ने टटोले होगे

इंतज़ार में उसने किताबो के पन्ने टटोले होगे...
नयी कहानी की चाहत में, पुराने मिसरे फिर से पढे होंगे!
लेकिन..सूखे हुय फूल और पहले के लिखे हुय कागज़ ने सारे समीकरण बदले होगे !
आज शब्दों के नीचे एक रेखा खींच दी है उसने, जो अब कतार में पहले और हम पीछे होंगे !
~ रजत

के आज इतिहास खुद को दुहरा बैठा

इतिहास रचने के चाहत में,
              आज उससे मुलाकात कर बैठा !
मुकाम का पहुचना मुमकिन न था,
             तो आज उसी को मंजिल बना बैठा !
जूनून न बन जाए वोह मेरा,
             इसलिए उसे अपनी फितरत बना बैठा!
कशमकश में गुजरी थी कल की रात,
              के आज इतिहास खुद को दुहरा बैठा !
~ रजत

मन को शब्दों में लिखना था बहुत मुश्किल

मन को शब्दों में लिखना था बहुत मुश्किल,
                         तो फिर आइने के सामने बैठा रहा !
गर्दिश में बेसुध रहा हर पल ,
                        तो फिर उसी गफलत में सोता रहा !
~ रजत
 

तेरे इंतज़ार में गुज़रा है जीवन पलछिन सा

इसे मेरी चाहत बोल या फिर वहम दिल का ,
                           तेरे इंतज़ार में गुज़रा है जीवन पलछिन सा !
इसे हक़-इ-बंदगी बोल या फिर नशा उस बिस्मिल का,
                           मेरे हाथों में है नूर तेरे तिलिस्म का !
इसे तपिश बोल या फिर ताप सत्य का,
                           के नीम होके भी तू अलंकार है इस वक़्त का !

~ रजत

मंजिल ने मेरी कदर ना जानी

मंजिल ने मेरी कदर ना जानी ,
                       तो अब मिलने पे, मंजिल की कदर क्यों करू मैं?
ये जीवन व्याख्या पूरी होने को है,
                       तो अब हाशिये की परवाह क्यों करू मैं?
इक रेला चला रखा है दिल में,
                      फिर गंतव्य का इंतज़ार क्यों करू मैं?
सब शांत हो जाएगा एक दिन ,
                     तो फिर बवंडर की गति का विचार क्यों करू मैं?

~ रजत