Tuesday, September 4, 2012

के आज इतिहास खुद को दुहरा बैठा

इतिहास रचने के चाहत में,
              आज उससे मुलाकात कर बैठा !
मुकाम का पहुचना मुमकिन न था,
             तो आज उसी को मंजिल बना बैठा !
जूनून न बन जाए वोह मेरा,
             इसलिए उसे अपनी फितरत बना बैठा!
कशमकश में गुजरी थी कल की रात,
              के आज इतिहास खुद को दुहरा बैठा !
~ रजत

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