इसे मेरी चाहत बोल या फिर वहम दिल का ,
तेरे इंतज़ार में गुज़रा है जीवन पलछिन सा !
इसे हक़-इ-बंदगी बोल या फिर नशा उस बिस्मिल का,
मेरे हाथों में है नूर तेरे तिलिस्म का !
इसे तपिश बोल या फिर ताप सत्य का,
के नीम होके भी तू अलंकार है इस वक़्त का !
~ रजत
तेरे इंतज़ार में गुज़रा है जीवन पलछिन सा !
इसे हक़-इ-बंदगी बोल या फिर नशा उस बिस्मिल का,
मेरे हाथों में है नूर तेरे तिलिस्म का !
इसे तपिश बोल या फिर ताप सत्य का,
के नीम होके भी तू अलंकार है इस वक़्त का !
~ रजत
No comments:
Post a Comment